Monday, 27 October 2014

1270_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

सभी शास्त्रों का सार...

शरीर न सत् है, न सुन्दर है और न प्रेमरूप है। यह तो हड्डी-मांस, रूधिर और वात-पित्त-कफ से बना हुआ एक जड़ ढाँचा है। यह शरीर पहले नहीं था, बाद में नहीं रहेगा और अभी भी नहीं (मृत्यु) की तरफ जा रहा है। परंतु आप तो पहले भी थे, अभी भी हो और बाद में भी रहोगे। अपने को सदैव सच्चिदानंदस्वरूप मानो।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Sunday, 26 October 2014

1269_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

                           

    ~~~~~ सावधान.....! ~~~~

अनुभवी आदमी प्रकृति की एकाध थप्पड़ से चेत जाता है और नहीं चेतेगा तो दूसरी मिलेगी, तीसरी मिलेगी। संसार में थप्पड़ मार-मरकर प्रकृति तुम्हें परमात्मा में पहुँचाना चाहती है। समझकर पहुँचना है तो तुम्हें हँसते-खेलते हुए पहुँचा देने के लिए वह प्रकृति देवी तैयार है। अगर नहीं मानते हो, संसार में मोह ममता करते हो तो मोह-ममता की चीजें छीनकर, थप्पड़ें मारकर भी तुम्हें जगाने के लिए वह प्रकृति देवी सक्रिय है। वह है तो आखिर परमात्मा की ही आह्लादिनी शक्ति। वह तुम्हारी शत्रु नहीं है, शुभचिन्तक है।

 -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Saturday, 25 October 2014

1268_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



~~~~ प्राप्ति और प्रतीति ~~~~

प्रतीति होती है माया में और प्राप्ति होती है अपने परब्रह्म परमात्मा-स्वभाव की। प्राप्त होने वाली एक ही चीज है, प्राप्त होने वाला एक ही तत्त्व है और वह है परमात्म-तत्त्व। उसकी ही केवल प्राप्ति होती है।प्रतीति होती है वृत्तियों से।जो बाहर से मिलेगा, वह सब प्रतीति मात्र होगा।जैसे स्वप्न की चीजों को साथ में लेकर आदमी जाग नहीं सकता, ऐसे ही प्रतीति को सच्चा मानकर परमात्म-तत्त्व में जाग नहीं सकता।

 -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Wednesday, 22 October 2014

Shubh Diwali

ज्ञान की चिंगारी को फूँकते रहना। ज्योत जगाते रहना। प्रकाश बढ़ाते रहना। सूरज की किरण के जरिये सूरज की खबर पा लेना। सदगुरुओं के प्रसाद के सहारे स्वयं सत्य की प्राप्ति तक पहुँच जाना। ऐसी हो मधुर दिवाली आपकी...

 -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Monday, 20 October 2014

1267_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



कबीर जी ने कहाः

कबीरा निन्दक ना मिलो पापी मिलो हजार।
एक निन्दक के माथे पर लाख पापीन को भार।।

विवेकानन्द कहते थेः 'तुम किसी का मकान छीन लो यह पाप तो है लेकिन इतना नहीं। वह घोर पाप नहीं है। किसी के रूपये छीन लेना पाप है लेकिन किसी की श्रद्धा की डोर तोड़ देना यह सबसे बड़ा घोर पाप है क्योंकि उसी श्रद्धा से वह शांति पाता था, उसी श्रद्धा के सहारे वह भगवान के तरफ जाता था।

 -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Sunday, 19 October 2014

1266_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

साम्य द्रष्टि आना चाहिए,यही सारी सृष्टि मंगलमय मालूम होनी चाहिए । जैसे तुम्हें खुद अपने पर विश्वास है वैसा ही सारी सृष्टि पर तुम्हारा विश्वास होना चाहिए ।यहाँ डरने की बात ही क्या है ? सब कुछ सुद्ध और पवित्र है । यह विश्व मंगलमय है क्योंकि परमेश्वर उसकी देख-भाल करता है।

 -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Friday, 17 October 2014

1265_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



आत्मा से बाहर मत भटको । अपने ही केन्द्र में स्थिर रहो अन्यथा तुम गिर पड़ोगे । अपने आप में पूर्ण विश्वास रखो । अपने केन्द्र पर डटे रहो । कोई चीज तुम्हें टस से मस नहीं कर सकती ।
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Tuesday, 14 October 2014

1264_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



असल मे डरने की बात ही नही ।चारों ओर,आगे और पीछे, भूत में और भविष्य में सारे देश में एक ही परमात्मा विधमान है और वह हमारा ही आत्मदेव है और मुझे डर किससे हो ?
-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Monday, 13 October 2014

1263_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



~~~~~~~ बुद्धि महान कैसे होती है ? ~~~~~~

बुद्धि को भगवत्प्राप्ति के योग्य बनाओ। जो जरूरी है वह करो, अनावश्यक कार्य और भोग सामग्री में उलझो नहीं। जब बुद्धि बाहर सुख दिखाती है तो क्षीण हो जाती है और जब अंतर्मुख होती है तो महान हो जाती है।
द्धि नष्ट कैसे होती है ?

अपने-आप में अतृप्त रहना, असंतुष्ट रहना, किसी के प्रति राग-द्वेष करना, भयभीत रहना, क्रोध करना आदि से बुद्धि कमजोर हो जाती है।

जो काम है, वासना है कि ʹयह मिल जाय तो सुखी हो जाऊँ, यह पाऊँ, यह भोगूँ....ʹ इससे बुद्धि छोटी हो जाती है।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Sunday, 12 October 2014

1262_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

      

  ~~~~~~  वीर ! तुम बढ़े चलो....  ~~~~~

हे विद्यार्थी ! पुरुषार्थी बनो, संयमी बनो, उत्साही बनो। लौकिक विद्या तो पाओ ही पर उस विद्या को भी पा लो, जो मानव को जीते-जी मृत्यु के पार पहुँचा देती है।उसे भी जानो जिसको जानने से सब जाना जाता है, इसी में तो मानव-जीवन की सार्थकता है। हे वीर ! तुम बढ़े चलो....

 -Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Saturday, 11 October 2014

1261_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

~~~~~~~~~~  उत्साह जहाँ, सफलता वहाँ  ~~~~~~~~~~~~

उत्साहसमन्वितः.... कर्ता सात्त्विक उच्यते।

ʹउत्साह से युक्त कर्ता सात्त्विक कहा जाता है।ʹ (श्रीमद् भगवदगीताः 18.26)

जो कार्य करें उत्साह से करें, तत्परता से करें, लापरवाही न बरतें। उत्साह से काम करने से योग्यता बढ़ती है, आनंद आता है। उत्साहहीन होकर काम करने से कार्य बोझा बन जाता है।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Thursday, 9 October 2014

1260_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



भगवान श्रीकृष्ण कह रहे हैं-

प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्।

आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।

''हे अर्जुन ! जिस काल में पुरूष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भली भाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है उस काल में वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है।"

जो अपने आप में तृप्त है, अपने आप में आनन्दित है, अपने आपमें खुश है वह स्थितप्रज्ञ है। तस्य तुलना केन जायते ? उसकी तुलना और किससे करें ? वह ऐसा महान हो जाता है। ऐसे महापुरूष का तो देवता लोग भी दर्शन करके अपना भाग्य बना लेते हैं। तैंतीस करोड़ देवता भी ऐसे महापुरूष का आदर करते हैं तो औरों की क्या बात है ?

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Wednesday, 8 October 2014

1259_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



~~~~~~  शक्ति सुरक्षा का एक अदभुत उपाय  ~~~~~

तालुस्थान (दाँतों से करीब आधा सें.मी. पीछे) में जिह्वा लगाने से जीवनशक्ति केन्द्रित हो जाती है और मस्तिष्क के दायें व बायें भागों में संतुलन रहता है। जब ऐसा संतुलन होता है तब व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है, सर्जनात्मक प्रवृत्ति खिलती है और प्रतिकूलताओं का सामना सरलता से हो सकता है।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Tuesday, 7 October 2014

1258_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

~~~~  जीवन को महान बनाना है तो.... ~~~~

शास्त्रकारों ने लिखा हैः

आयुस्तेजो बलं वीर्यं प्रज्ञा श्रीश्च महद् यशः।
पुण्यं च प्रीतिमत्वं च हन्यतेઽब्रह्मचर्यया।।

आयु, तेज, बल, वीर्य, बुद्धि, लक्ष्मी, यश, पुण्य और प्रीति – ये सब ब्रह्मचर्य का पालन न करने से नष्ट हो जाते हैं। इसीलिए वीर्यरक्षा स्तुत्य है।

ʹअथर्ववेदʹ (16.1.1,4) में कहा गया हैः

अतिसृष्टो अपां वृषभोઽतिसृष्टा अग्नयो दिव्याः। इदं तमति सृजामि तं माઽभ्यवनिक्षि।


ʹशरीर में व्याप्त वीर्यरूपी जल को बाहर ले जाने वाले, शरीर से अलग कर देने वाले काम को मैंने परे हटा दिया है। अब मैं इस काम को अपने से सर्वथा दूर फेंकता हूँ। मैं इस बल, बुद्धि, आरोग्यतानाशक काम का कभी शिकार नहीं होऊँगा।ʹ .....और इस प्रकार के संकल्प से अपना जीवन-निर्माण न करके जो व्यक्ति वीर्यनाश करता रहता है,  उसकी क्या गति होती है, इसका भी वेदों में  उल्लेख आता हैः

रुजन् परिरूजन् मृणन् प्रमृणन्।। म्रोको मनोहा खनो निर्दाह आत्मदूषिस्तनूदूषिः।।


ʹयह काम रोगी बनाने वाला है, बहुत बुरी तरह रोगी करने वाला है। मृणन् यानी मार देने वाला है। प्रमृणन् यानी बहुत बुरी तरह मारने वाला है। यह टेढ़ी चाल चलाता है, मानसिक शक्तियों को नष्ट कर देता है। शरीर में से स्वास्थ्य, बल, आरोग्यता आदि को नोच-नोच के बाहर फेंक देता है। शरीर की सब धातुओं को जला देता है। जीवात्मा को मलिन कर देता है। शरीर के वात, पित्त, कफ को दूषित करके उसे तेजोहीन बना देता है।ʹ (अथर्ववेदः 16.1.2,3)

Monday, 6 October 2014

1257_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



मुश्किलें दिल के इरादे आजमाती हैं। स्वप्न के परदे निगाहों से हटाती हैं।।
हौसला मत हार गिरकर ओ मुसाफिर ! ठोकरें इन्सान को चलना सिखाती हैं।।

Saturday, 4 October 2014

1256_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



~~~~~  एकाग्रता से आत्मशाँति  ~~~~
पुरुष यह चिन्तन करने लगे की सुख-दुःख सब आने-जानेवाला है, मन, बुद्धि, इन्द्रियाँ ये सब प्रकृति के हैं, उसको देखनेवाला मैं असंगो अयं पुरुषः केवल निर्गुणश्च तो क्यों वह सफल नहीं होगा?
इस प्रकार एकाग्रता को तत्त्वज्ञान में ले जाओ तो बेड़ा पार हो जाये।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

1255_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU



सर्वदा आनन्द में, शांतमना होकर रहो

सुख-दुःख, मान-अपमान, हर्ष-शोक आदि द्वन्द्व शरीर के धर्म हैं। जब तक शरीर है, तब तक ये आते जाते रहेंगे ।उनके आने पर तुम व्याकुल मत होना। तुम पूर्ण आत्मा हो, अविनाशी हो और सुख-दुःख आने जाने वाले हैं।

-Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu

Thursday, 2 October 2014

1254_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

संसार कल्पित मानता, नहीं भोग में अनुरागता।
सम्पत्ति पा नहीं हर्षता, आपत्ति से नहीं भागता॥

निज आत्म में संतृप्त है, नहीं देह का अभिमान है।
ऐसे विवेकी के लिए, सब हानि-लाभ समान है॥

- भोला बाबा

1253_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

गुरूभक्तियोग का अर्थ है
व्यक्तिगत भावनाओं,
इच्छाओं, समझ-बुद्धि एवं
निश्चयात्मक बुद्धि के
परिवर्तन द्वारा अहोभाव को
अनंत चेतना स्वरूप में
परिणत करना।

-श्री स्वामी शिवानन्द सरस्वती