Monday, 31 October 2011
संसार में माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी के सम्बन्ध की तरह गुरु-शिष्य का सम्बन्ध भी एक सम्बन्ध ही है लेकिन अन्य सब सम्बन्ध बन्धन बढ़ाने वाले हैं जबकि गुरु-शिष्य का सम्बन्ध सम बन्धनों से मुक्ति दिलाता है। यह सम्बन्ध एक ऐसा सम्बन्ध है जो सब बन्धनों से छुड़ाकर अन्त में आप भी हट जाता है और जीव को अपने शिवस्वरूप का अनुभव करा देता है।
Pujya asaram ji bapu
Pujya asaram ji bapu
एक बार सागर की एक बड़ी तरंग एक बुलबुले की क्षुद्रता पर हँसने लगी | बुलबुले ने कहा : " ओ तरंग ! मैं तो छोटा हूँ फिर भी बहुत सुखी हूँ | कुछ ही देर में मेरी देह टूट जायेगी, बिखर जायेगी | मैं जल के साथ जल हो जाऊँगा | वामन मिटकर विराट बन जाऊँगा | मेरी मुक्ति बहुत नजदीक है | मुझे आपकी स्थिति पर दया आती है | आप इतनी बड़ी हुई हो | आपका छुटकारा जल्दी नहीं होगा | आप भाग-भागकर सामनेवाली चट्टान से टकराओगी | अनेक छोटी-छोटी तरंगों में विभक्त हो जाओगी | उन असंख्य तरंगों में से अनन्त-अनन्त बुलबुलों के रूप में परिवर्तित हो जाओगी | ये सब बुलबुले फूटेंगे तब आपका छुटकारा होगा | बड़प्पन का गर्व क्यों करती हो ? " जगत की उपलब्धियों का अभिमान करके परमात्मा से दूर मत जाओ | बुलबुले की तरह सरल रहकर परमात्मा के साथ एकता का अनुभव करो |
Pujya asaram ji bapu :-
Pujya asaram ji bapu :-
Wednesday, 26 October 2011
ऐ गाफिल ! न समझा था , मिला था तन रतन तुझको ।
मिलाया खाक में तुने, ऐ सजन ! क्या कहूँ तुझको ?
अपनी वजूदी हस्ती में तू इतना भूल मस्ताना …
अपनी अहंता की मस्ती में तू इतना भूल मस्ताना …
करना था किया वो न, लगी उल्टी लगन तुझको ॥
ऐ गाफिल ……।
जिन्होंके प्यार में हरदम मुस्तके दीवाना था…
जिन्होंके संग और साथ में भैया ! तू सदा विमोहित था…
आखिर वे ही जलाते हैं करेंगे या दफन तुझको ॥
ऐ गाफिल …॥
शाही और गदाही क्या ? कफन किस्मत में आखिर ।
मिले या ना खबर पुख्ता ऐ कफन और वतन तुझको ॥
ऐ गाफिल ……।Tuesday, 25 October 2011
यदि आप सर्वांगपूर्ण जीवन का आनन्द लेना चाहते हो तो कल की चिन्ता छोड़ो | अपने चारों ओर जीवन के बीज बोओ | भविष्य में सुनहरे स्वपन साकार होते देखने की आदत बनाओ | सदा के लिये मन में यह बात पक्की बैठा दो कि आपका आनेवाला कल अत्यन्त प्रकाशमय, आनन्दमय एवं मधुर होगा | कल आप अपने को आज से भी अधिक भाग्यवान् पायेंगे | आपका मन सर्जनात्मक शक्ति से भर जायेगा | जीवन ऐश्वर्यपूर्ण हो जायेगा | आपमें इतनी शक्ति है कि विघ्न आपसे भयभीत होकर भाग खड़े होंगे | ऐसी विचारधारा से निश्चित रूप से कल्याण होगा | आपके संशय मिट जायेंगे |
Pujya Asaram ji Bapu :-
Monday, 24 October 2011
सदा स्मरण रहे कि इधर-उधर भटकती वृत्तियों के साथ तुम्हारी शक्ति भी बिखरती रहती है। अतः वृत्तियों को बहकाओ नहीं। तमाम वृत्तियों को एकत्रित करके साधना-काल में आत्मचिन्तन में लगाओ और व्यवहार-काल में जो कार्य करते हो उसमें लगाओ। दत्तचित्त होकर हर कोई कार्य करो। सदा शान्त वृत्ति धारण करने का अभ्यास करो। विचारवन्त एवं प्रसन्न रहो। जीवमात्र को अपना स्वरूप समझो। सबसे स्नेह रखो। दिल को व्यापक रखो। आत्मनिष्ठ में जगे हुए महापुरुषों के सत्संग एवं सत्साहित्य से जीवन को भक्ति एवं वेदान्त से पुष्ट एवं पुलकित करो।
प्रातः स्मरणीय परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू :-
प्रातः स्मरणीय परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू :-
'मैं कभी दुर्बल नहीं होता। दुर्बल और सबल शरीर होता है। मैं तो मुक्त आत्मा हूँ... चैतन्य परमात्मा का सनातन अंश हूँ.... मैं सदगुरु तत्त्व का हूँ। यह संसार मुझे हिला नहीं सकता, झकझोर नहीं सकता। झकझोरा जाता है शरीर, हिलता है मन। शरीर और मन को देखने वाला मैं चैतन्य आत्मा हूँ। घर का विस्तार, दुकान का विस्तार, राज्य की सीमा या राष्ट्र की सीमा बढ़ाकर मुझे बड़ा कहलवाने की आवश्यकता नहीं है। मैं तो असीम आत्मा हूँ। सीमाएँ सब माया में हैं, अविद्या में हैं। मुझ आत्मा में तो असीमता है। मैं तो मेरे इस असीम राज्य की प्राप्ति करूँगा और निश्चिन्त जिऊँगा। जो लोग सीमा सुरक्षित करके अहंकार बढ़ाकर जी गये, वे लोग भी आखिर सीमा छोड़कर गये। अतः ऐसी सीमाओं का आकर्षण मुझे नहीं है। मैं तो असीम आत्मा में ही स्थित होना चाहता हूँ....।'
ऐसा चिन्तन करने वाला साधक कुछ ही समय में असीम आत्मा का अनुभव करता है।
प्रातः स्मरणीय परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू :-
अच्छी दिवाली हमारी
सभी इन्द्रियों में हुई रोशनी है।
यथा वस्तु है सो तथा भासती है।।
विकारी जगत् ब्रह्म है निर्विकारी।
मनी आज अच्छी दिवाली हमारी।।1।।
दिया दर्शे ब्रह्मा जगत् सृष्टि करता।
भवानी सदा शंभु ओ विघ्न हर्ता।।
महा विष्णु चिन्मूर्ति लक्ष्मी पधारी।
मनी आज अच्छी दिवाली हमारी।।2।।
दिवाला सदा ही निकाला किया मैं।
जहाँ पे गया हारता ही रहा मैं।।
गये हार हैं आज शब्दादि ज्वारी।
मनी आज अच्छी दिवाली हमारी।।3।।
लगा दाँव पे नारी शब्दादि देते।
कमाया हुआ द्रव्य थे जीत लेते।।
मुझे जीत के वे बनाते भिखारी।
मनी आज अच्छी दिवाली हमारी।।4।।
गुरु का दिया मंत्र मैं आज पाया।
उसी मंत्र से ज्वारियों को हराया।।
लगा दाँव वैराग्य ली जीत नारी।
मनी आज अच्छी दिवाली हमारी।।5।।
सलोनी, सुहानी, रसीली मिठाई।
वशिष्ठादि हलवाइयों की है बनाई।।
उसे खाय तृष्णा दुराशा निवारी।
मनी आज अच्छी दिवाली हमारी।।6।।
हुई तृप्ति, संतुष्टता, पुष्टता भी।
मिटी तुच्छता, दुःखिता दीनता भी।।
मिटे ताप तीनों हुआ मैं सुखारी।
मनी आज अच्छी दिवाली हमारी।।7।।
करे वास भोला ! जहाँ ब्रह्म विद्या।
वहाँ आ सके न अंधेरी अविद्या।।
मनावें सभी नित्य ऐसी दिवाली।
मनी आज अच्छी दिवाली हमारी।।8।।
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐFriday, 21 October 2011
आत्म-ध्यान का आनन्द संसार के सुख या हर्ष जैसा नहीं है। संसार के सुख में और आत्मसुख में बड़ा फासला है। संसार का सुख क्रिया से आता है, उपलब्ध फल का भोग करने से आता है जबकि आत्मसुख तमाम स्थूल-सूक्ष्म क्रियाओं से उपराम होने पर आता है। सांसारिक सुख में भोक्ता हर्षित होता है और साथ ही साथ बरबाद होता है। आत्मसुख में भोक्ता शांत होता है और आबाद होता है।
प्रातः स्मरणीय परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू :-
एक आदमी आपको दुर्जन कहकर परिच्छिन्न करता है तो दूसरा आपको सज्जन कहकर भी परिच्छिन्न ही करता है | कोई आपकी स्तुति करके फुला देता है तो कोई निन्दा करके सिकुड़ा देता है | ये दोनों आपको परिच्छिन्न बनाते हैं | भाग्यवान् तो वह पुरूष है जो तमाम बन्धनों के विरूद्ध खड़ा होकर अपने देवत्व की, अपने ईश्वरत्व की घोषणा करता है, अपने आत्मस्वरूप का अनुभव करता है | जो पुरुष ईश्वर के साथ अपनी अभेदता पहचान सकता है और अपने इर्दगिर्द के लोगों के समक्ष, समग्र संसार के समक्ष निडर होकर ईश्वरत्व का निरूपण कर सकता है, उस पुरूष को ईश्वर मानने के लिये सारा संसार बाध्य हो जाता है | पूरी सृष्टि उसे अवश्य परमात्मा मानती है |
प्रातः स्मरणीय परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू :-
प्रातः स्मरणीय परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू :-