Saturday, 29 October 2011

एक बार सागर की एक बड़ी तरंग एक बुलबुले की क्षुद्रता पर हँसने लगी | बुलबुले ने कहा : " तरंग ! मैं तो छोटा हूँ फिर भी बहुत सुखी हूँ | कुछ ही देर में मेरी देह टूट जायेगी, बिखर जायेगी | मैं जल के साथ जल हो जाऊँगा | वामन मिटकर विराट बन जाऊँगा | मेरी मुक्ति बहुत नजदीक है | मुझे आपकी स्थिति पर दया आती है | आप इतनी बड़ी हुई हो | आपका छुटकारा जल्दी नहीं होगा | आप भाग-भागकर सामनेवाली चट्टान से टकराओगी | अनेक छोटी-छोटी तरंगों में विभक्त हो जाओगी | उन असंख्य तरंगों में से अनन्त-अनन्त बुलबुलों के रूप में परिवर्तित हो जाओगी | ये सब बुलबुले फूटेंगे तब आपका छुटकारा होगा | बड़प्पन का गर्व क्यों करती हो ? " जगत की उपलब्धियों का अभिमान करके परमात्मा से दूर मत जाओ | बुलबुले की तरह सरल रहकर परमात्मा के साथ एकता का अनुभव करो
 Pujya asaram ji bapu :-

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.