प्रार्थना के सम्बन्ध में जो कुछ कहा जाय, कम है क्योंकि यह निराशा को आशा में, निर्बलता को बल में
और असफलता को सफलता में परिवर्तित कर प्राणी को उसका अभीष्ट प्राप्त कराने में समर्थ है।
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