Wednesday, 19 June 2013

1133_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

 साधक'पर' की सेवा करते-करते 'पर' में 'स्व' को देखता है, 'स्व' में 'पर' को देखता है. 'स्व' और 'पर' की भ्रांति मिटाकर एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति के अनुभव में जग जाता है।

-Pujya Asharam Ji Bapu


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