Wednesday, 8 May 2013

1093_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

तुलसीदास जी ने ठीक ही कहा हैः
गुरू बिन भवनिधि तरहिं न कोई।
चाहे बिरंचि शंकर सम होई।।
संसाररूपी सागर को कोई अपने आप तर नहीं सकता। चाहे ब्रह्माजी जैसे सृष्टिकर्त्ता हों, शिवजी जैसे संहारकर्त्ता हों फिर भी अपने मन की चाल से, अपनी मान्यताओं के इन जंगल से निकालने के लिए पगडण्डी दिखाने वाले सदगुरू अवश्य चाहिए।

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.