Sunday, 1 July 2012

644_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

किं भूषणाद् भूषणमस्ति शीलम्
तीर्थं परं किं स्वमनो विशुद्धम्।
किमत्र हेयं कनकं च कान्ता
श्राव्यं सदा किं गुरूवेदवाक्यम्।।
'उत्तम-से-उत्तम भूषण क्या है ? शील। उत्तम तीर्थ क्या है ? अपना निर्मल मन ही परम तीर्थ है। इस जगत में त्यागने योग्य क्या है ? कनक और कान्ता (सुवर्ण और स्त्री)। हमेशा सुनने योग्य क्या है ? सदगुरू और वेद के वचन।'
श्री शंकराचार्यविरचित 'मणिरत्नमाला' का यह आठवाँ श्लोक है।

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