Saturday, 7 January 2012

113_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

संसृत मूल शब्द प्रद नाना।

सकल शोक दायक अभिमाना।।

'संसृत' माने जो सरकने वाला है, नाश के तरफ जाने वाला है। उस नाशवान पदार्थों में, नाशवान अवस्थाओं में, जिसकी रूचि हो गई, जिसका मोह हो गया उसको सब शोक आकर मिलते हैं। बदलने वाले अहंकार को, बदलनेवाले प्रकृति के पदार्थों को, बदलने वाले गुणों को जिसने 'मैं' मान लिया, बदलने वाली अवस्थाओं को जिसने अपनी अवस्थाएँ मान ली, बदलने वाले शरीर को जिसने 'मैं' मान लिया, बदलने वाले घर को जिसने 'मेरा' मान लिया, बदलने वाले पत्नी के देह को जिसने अपनी पत्नी मान लिया, बदलने वाले पुरुष के देह को जिसने अपना पति मान लिया, बदलने वाले कुटुम्बियों को जिसने अपना मान लिया उसके लिए तुलसीदासजी कहते हैं-

संसृत मूल शब्द प्रद नाना।
                      सकल शोक दायक अभिमाना।।

             Pujya asharam ji bapu :-

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