Sunday, 16 October 2011

वेदान्त का यह अनुभव है कि नीच, नराधम, पिशाच, शत्रु कोई है ही नहीं | पवित्र स्वरूप ही सर्व रूपों में हर समय शोभायमान है | अपने-आपका कोई अनिष्ट नहीं करता | मेरे सिवा और कुछ है ही नहीं तो मेरा अनिष्ट करने वाला कौन है ? मुझे अपने-आपसे भय कैसा ?
 प्रातः स्मरणीय परम पूज्य  संत श्री आसारामजी बापू   :-

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